जब संवाद का कोई जरिया न हो
जब संवाद का कोई जरिया न हो " सुनो तुम देख लेना खुद को, जब मैं दिख ना सकू, तुम को मालूम है, अब न कोई पत्र आ सकेगा, ना कोई संदेश मेरा तुम तक जा सकेगा, अब रास्ता वो भी सिर्फ मेरी परछाईयां तुम को दिखायेगा, जब तुम्हारा मन मुझको देखना चाहेगा, सुनो तुम महसूस कर लेना मुझे कहीं जब तुमको काटे तुम्हारा अकेलापन कभी, लेकिन महफ़िलो मे मत ढूँढना मुझे कहीं दुनिया की भीड़ से अलग जो हूँ मैं, सुनो जब कभी कोई जरिया ना हो गुफ्तगू का मुझसे, कर लेना तुम बाते खुद के दिल से, मैं वहाँ नहीं रहती आजकल जहाँ तुम सोचते हो, मैं कल्पना से दूर हूँ तुम्हारी, तुम नहीं सोच सकोगे अब मुझे वहाँ ,, मैं वहाँ हूँ जहाँ कृष्णा के राधा रही है, शिव के सती रही हैं, मैं वहाँ ही हूँ जहाँ मैं हूँ मगर मेरा होना मेरा अस्तित्व नहीं है!! तुम खामोशी से सुनना मुझे जब संवाद का कोई जरिया नहीं हो!!