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जब संवाद का कोई जरिया न हो

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जब संवाद का कोई जरिया न हो " सुनो तुम देख लेना खुद को,  जब मैं दिख ना सकू,  तुम को मालूम है, अब न कोई पत्र आ सकेगा, ना कोई संदेश मेरा तुम तक जा सकेगा,  अब रास्ता वो भी सिर्फ मेरी परछाईयां तुम को दिखायेगा,  जब तुम्हारा मन मुझको देखना चाहेगा,  सुनो तुम महसूस कर लेना मुझे कहीं जब तुमको काटे तुम्हारा अकेलापन कभी,  लेकिन महफ़िलो मे मत ढूँढना मुझे कहीं दुनिया की भीड़ से अलग जो हूँ मैं,  सुनो जब कभी कोई जरिया ना हो गुफ्तगू का मुझसे,  कर लेना तुम बाते खुद के दिल से,  मैं वहाँ नहीं रहती आजकल जहाँ तुम सोचते हो,  मैं कल्पना से दूर हूँ तुम्हारी, तुम नहीं सोच सकोगे अब मुझे वहाँ ,,  मैं वहाँ हूँ जहाँ कृष्णा के राधा रही है,  शिव के सती रही हैं, मैं वहाँ ही हूँ जहाँ मैं हूँ मगर मेरा होना मेरा अस्तित्व नहीं है!!  तुम खामोशी से सुनना मुझे जब संवाद का कोई जरिया नहीं हो!!

हाँ मैं नारी हूँ

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 झुकी हूँ, रुकी हूँ, गिरी हूँ, फिर से उठी हूँ, ठहरी हूँ,थमी हूँ, फिर से चली हूँ, बिखरी हूँ सिमटी हूँ, हालातों से अपने कई बार हारी हूँ, शक्ति हूँ, ज्वाला हूँ, हाँ मैं नारी हूँ, हाँ मैं नारी हूँ!!

क्यूँ आखिर क्यूँ??

 सुनो मैंने सुना है आज फिर एक किस्सा, नहीं नहीं तेरा और मेरा नहीं है नहीं नहीं तेरा और मेरा नहीं है तो फिर किसकी जिंदगी का है हिस्सा, तुम खामोश हो, और मैं भी मजबूर लेकिन क्यूँ आखिर क्यूँ हमेशा ही स्त्री की लज्जा होती चकनाचूर!! क्यूँ आखिर क्यूँ?? और कब तलक यूँ सरेआम इज्जत लुटती रहेगी, बहन बेटी कब तक बाजारों में बिकती रहेगी, अरे तुम्हारी तृष्णा को क्यूँ इतना तुम बढ़ाते हो, घर में बीवी होती तो है, फिर कोठे पे क्यूँ जाते हो, क्यूँ आखिर क्यूँ अभी मणिपुर, या राजस्थान में दरिंदगी की हद पार हुई, और देखो नेताओं की रोटियां इन खबरों पर पक कर तैयार हुई,, आसिफा, गुड़िया, निर्भया को हम आजतक भूले नहीं है, क्यूँ आखिर क्यूँ इनकी संख्या तुम बढ़ाते हो, कैसी बुद्धि सी फिरती है जालिमो तुम्हारी, क्यूँ आखिर क्यूँ मासूमों को नोच के खाते हो, काश तुमको उसी वक़्त मौत आती जब सीता सामान स्त्री पर अपनी गन्दी नजर तुम उठाते हो.. Asmita singh