क्यूँ आखिर क्यूँ??
सुनो मैंने सुना है आज फिर एक किस्सा,
नहीं नहीं तेरा और मेरा नहीं है
नहीं नहीं तेरा और मेरा नहीं है
तो फिर किसकी जिंदगी का है हिस्सा,
तुम खामोश हो, और मैं भी मजबूर
लेकिन क्यूँ आखिर क्यूँ
हमेशा ही स्त्री की लज्जा होती चकनाचूर!!
क्यूँ आखिर क्यूँ??
और कब तलक यूँ सरेआम इज्जत लुटती रहेगी,
बहन बेटी कब तक बाजारों में बिकती रहेगी,
अरे तुम्हारी तृष्णा को क्यूँ इतना तुम बढ़ाते हो,
घर में बीवी होती तो है, फिर कोठे पे क्यूँ जाते हो,
क्यूँ आखिर क्यूँ
अभी मणिपुर, या राजस्थान में
दरिंदगी की हद पार हुई,
और देखो नेताओं की रोटियां
इन खबरों पर पक कर तैयार हुई,,
आसिफा, गुड़िया, निर्भया को
हम आजतक भूले नहीं है,
क्यूँ आखिर क्यूँ इनकी संख्या तुम बढ़ाते हो,
कैसी बुद्धि सी फिरती है जालिमो
तुम्हारी,
क्यूँ आखिर क्यूँ मासूमों को नोच के खाते हो,
काश तुमको उसी वक़्त मौत आती
जब सीता सामान स्त्री पर
अपनी गन्दी नजर तुम उठाते हो..
Asmita singh
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