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जिंदगी ही तो है

अरे क्यूँ परेशान होते हो मुश्किलों से, क्यूँ घबरा जाते हो इन महफ़िलो से, तन्हा हो,तन्हा हो, ये कैसा शोर है, क्यूँ तड़प जाते हो इन मुश्किलों से!! जिंदगी ही तो है, गम क्यूँ है,-2 क्यूँ पिघल जाते हो इन दिलजलों से!! तन्हा हो-2 ये कैसा शोर है, क्यूँ भड़क जाते हो मुश्किलों से!! ये तेरा शहर मेरे शहर जैसा ही है, हाँ ये तेरा शहर मेरे शहर जैसा ही है,, तन्हा हो-2 ये कैसा शोर है, क्यूँ बदल जाते हो इन मुश्किलों से!! तू तेरी हकीकत थोड़ी बचा के रख तुझमें तू बाकि है ये भी दिखा के रख, तन्हा हो-2 ये कैसा शोर है, क्यूँ तुनक जाते हो इन मुश्किलों से!! कोई खेल नहीं मेरे दोस्त जिंदगी ही तो है!!

क्या लिखू??

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सोचा आज कुछ अलग लिखू , इश्क़, ग़म , जुदाई, धोखा , और मायूसी से अलग हटके कोई मंजर लिखू ,, फिर ख़्याल आया आये दिन की घटनाओं का सोचा क्यों न मैं उनका ही अपने शब्दों में एक वर्णन लिखू !! वो माँ की ममता के बदले मिले दुत्कार का सार लिखू या बाप के कंधों पर बुढ़ापे में आया सारे घर का भार लिखू !! आये दिन चौराहे पर बिकता बहन बेटी का घर संसार लिखू , या दहेज के लालचियों पर एक कड़ा प्रहार लिखू !! नशे की लत में बिकता औरत के अस्तित्व का संसार लिखू या घरों में अभद्रता औऱ गलियों से सुसज्जित एक अलग परिवार लिखू , कुचल देते है जो औरत के अरमान को , क्या उनकी कोई मिसाल लिखू !! बेटो की चाह में जन्मी उस मासूम बच्ची की मौत की दास्तान लिखू या हवस की तलब में कोख़ में पड़ी जान का किस्सा में सरे आम लिखू !! इंसान रूपी भेड़ियों की हरकतों का वर्णन मैं आज लिखू या फिर किसी कलंकित होने के डर में सहमी जान का दर्द मैं यहाँ लिखू !! क्या लिखू मैं इससे अलग और कौनसा नया जहां लिखू !