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जिंदगी के नाजुक पल

 कितना भी संभाल लो, लोग,रिश्ते,वक्त कुछ बस में नहीं है,  सारे प्रयास किए की उसके अपने उससे दूर न हो कभी, कभी नियति को मंजूर नहीं, कभी किसी का साथ अंतिम सांस तक होता है, लेकिन यकीन मानना, जो रिश्ते अंतिम सांस तक तुमने बचाए है, वो दूर होके भी होंगे तुम्हारे करीब, उनका अहसास, उनकी सीख, उनकी बाते, और उनके संस्कार सब तुममें शेष बचे रहेंगे, जब तक तुम उनको जिंदा रखोगे अपने जेहन में, और जिस इंसान ने अपने अपनों को संभाला है, जिसने उनको भी संभाला जो उसके अपने थे भी नहीं लेकिन उसको सफर में मिले थे , यकीन मानना बहुत बड़ा दिल चाहिए, ऐसा इंसान बनने के लिए जो अपने अंदर जिंदा रखे रिश्तों को, बहुत टूटा होगा आज जब परिवार की नींव को दूर जाते हुए देखा, लेकिन सीखा उसने जुड़े रहना उनसे, और सीखी होगी वो सीख जिसने जाने के बाद भी जिंदा रखा होगा खुद को उनके अपनों के दिल में, वरना आजकल कहा चलते है रिश्ते अंत तक, वो तो ढहना जानते है बीच में ही।।। लेकिन ईश्वर उसे देना ताकत की वो सम्भल जाए वक्त के साथ और सबको भी संभाले उनकी तरह जो आज चले गए दूर सबसे क्योंकि अंतिम सांस और अंतिम क्षण कभी कह कर नहीं आते.. ...

ओ स्त्री तुम फिर आना

ओ स्त्री तुम फिर आना सुनो स्त्री तुम फिर आना ..              चाहे मिट जाये वजूद कोख में  चाहे   लायी जाओ तुम हवस के शौक में .. लेकिन तुम फिर आना .. चाहे फेकी जाओ कचरे के ढेर में या पायी जाओ किसी शहर में.. लेकिन तुम फिर आना .. कभी किस्मत बन कर प्रकट होना, कभी नियति सी तुम आना कभी किसी नेक इंसान को कचरे में मिलना या किसी जरुरत मंद का सहारा तुम बनना .. सुनो पर तुम जरुर आना .. चाहे छली जाओ , चाहे गम की कढ़ाई में तली जाओ , चाहे किसी के बहकावे में आओ , चाहे किसी के जुल्म सितम सहने आओ .. पर तुम जरूर आना .. सुनो ज्वालामुखी को अपने अंदर बढकाना .. उसकी लपटो से फिर तुम उनको जलाना .. जिनसे तुमने दर्द पाया है .. उनको सबक सिखाने तुम चली आना ... सुनो ना तुम्हें मिलेंगे वो सादगी कमाल की लिये . जो झूठ का नक़ाब रखेंगे .. लेकिन टूटना नहीं उनसे कभी वो हज़ारो तरीके से तोड़ेंगे... तुम बहुत बार रो गी , उदास होगी , अरमान तुम्हारे तोड़े जायेंगे .. लेकिन मत घबराना .. ओ स्त्री तुम फिर आना ... तुम फिर से खड़ी ...

जिंदगी ही तो है

अरे क्यूँ परेशान होते हो मुश्किलों से, क्यूँ घबरा जाते हो इन महफ़िलो से, तन्हा हो,तन्हा हो, ये कैसा शोर है, क्यूँ तड़प जाते हो इन मुश्किलों से!! जिंदगी ही तो है, गम क्यूँ है,-2 क्यूँ पिघल जाते हो इन दिलजलों से!! तन्हा हो-2 ये कैसा शोर है, क्यूँ भड़क जाते हो मुश्किलों से!! ये तेरा शहर मेरे शहर जैसा ही है, हाँ ये तेरा शहर मेरे शहर जैसा ही है,, तन्हा हो-2 ये कैसा शोर है, क्यूँ बदल जाते हो इन मुश्किलों से!! तू तेरी हकीकत थोड़ी बचा के रख तुझमें तू बाकि है ये भी दिखा के रख, तन्हा हो-2 ये कैसा शोर है, क्यूँ तुनक जाते हो इन मुश्किलों से!! कोई खेल नहीं मेरे दोस्त जिंदगी ही तो है!!

क्या लिखू??

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सोचा आज कुछ अलग लिखू , इश्क़, ग़म , जुदाई, धोखा , और मायूसी से अलग हटके कोई मंजर लिखू ,, फिर ख़्याल आया आये दिन की घटनाओं का सोचा क्यों न मैं उनका ही अपने शब्दों में एक वर्णन लिखू !! वो माँ की ममता के बदले मिले दुत्कार का सार लिखू या बाप के कंधों पर बुढ़ापे में आया सारे घर का भार लिखू !! आये दिन चौराहे पर बिकता बहन बेटी का घर संसार लिखू , या दहेज के लालचियों पर एक कड़ा प्रहार लिखू !! नशे की लत में बिकता औरत के अस्तित्व का संसार लिखू या घरों में अभद्रता औऱ गलियों से सुसज्जित एक अलग परिवार लिखू , कुचल देते है जो औरत के अरमान को , क्या उनकी कोई मिसाल लिखू !! बेटो की चाह में जन्मी उस मासूम बच्ची की मौत की दास्तान लिखू या हवस की तलब में कोख़ में पड़ी जान का किस्सा में सरे आम लिखू !! इंसान रूपी भेड़ियों की हरकतों का वर्णन मैं आज लिखू या फिर किसी कलंकित होने के डर में सहमी जान का दर्द मैं यहाँ लिखू !! क्या लिखू मैं इससे अलग और कौनसा नया जहां लिखू !

जब संवाद का कोई जरिया न हो

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जब संवाद का कोई जरिया न हो " सुनो तुम देख लेना खुद को,  जब मैं दिख ना सकू,  तुम को मालूम है, अब न कोई पत्र आ सकेगा, ना कोई संदेश मेरा तुम तक जा सकेगा,  अब रास्ता वो भी सिर्फ मेरी परछाईयां तुम को दिखायेगा,  जब तुम्हारा मन मुझको देखना चाहेगा,  सुनो तुम महसूस कर लेना मुझे कहीं जब तुमको काटे तुम्हारा अकेलापन कभी,  लेकिन महफ़िलो मे मत ढूँढना मुझे कहीं दुनिया की भीड़ से अलग जो हूँ मैं,  सुनो जब कभी कोई जरिया ना हो गुफ्तगू का मुझसे,  कर लेना तुम बाते खुद के दिल से,  मैं वहाँ नहीं रहती आजकल जहाँ तुम सोचते हो,  मैं कल्पना से दूर हूँ तुम्हारी, तुम नहीं सोच सकोगे अब मुझे वहाँ ,,  मैं वहाँ हूँ जहाँ कृष्णा के राधा रही है,  शिव के सती रही हैं, मैं वहाँ ही हूँ जहाँ मैं हूँ मगर मेरा होना मेरा अस्तित्व नहीं है!!  तुम खामोशी से सुनना मुझे जब संवाद का कोई जरिया नहीं हो!!

हाँ मैं नारी हूँ

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 झुकी हूँ, रुकी हूँ, गिरी हूँ, फिर से उठी हूँ, ठहरी हूँ,थमी हूँ, फिर से चली हूँ, बिखरी हूँ सिमटी हूँ, हालातों से अपने कई बार हारी हूँ, शक्ति हूँ, ज्वाला हूँ, हाँ मैं नारी हूँ, हाँ मैं नारी हूँ!!

क्यूँ आखिर क्यूँ??

 सुनो मैंने सुना है आज फिर एक किस्सा, नहीं नहीं तेरा और मेरा नहीं है नहीं नहीं तेरा और मेरा नहीं है तो फिर किसकी जिंदगी का है हिस्सा, तुम खामोश हो, और मैं भी मजबूर लेकिन क्यूँ आखिर क्यूँ हमेशा ही स्त्री की लज्जा होती चकनाचूर!! क्यूँ आखिर क्यूँ?? और कब तलक यूँ सरेआम इज्जत लुटती रहेगी, बहन बेटी कब तक बाजारों में बिकती रहेगी, अरे तुम्हारी तृष्णा को क्यूँ इतना तुम बढ़ाते हो, घर में बीवी होती तो है, फिर कोठे पे क्यूँ जाते हो, क्यूँ आखिर क्यूँ अभी मणिपुर, या राजस्थान में दरिंदगी की हद पार हुई, और देखो नेताओं की रोटियां इन खबरों पर पक कर तैयार हुई,, आसिफा, गुड़िया, निर्भया को हम आजतक भूले नहीं है, क्यूँ आखिर क्यूँ इनकी संख्या तुम बढ़ाते हो, कैसी बुद्धि सी फिरती है जालिमो तुम्हारी, क्यूँ आखिर क्यूँ मासूमों को नोच के खाते हो, काश तुमको उसी वक़्त मौत आती जब सीता सामान स्त्री पर अपनी गन्दी नजर तुम उठाते हो.. Asmita singh