ओ स्त्री तुम फिर आना

ओ स्त्री तुम फिर आना
सुनो स्त्री तुम फिर आना ..             
चाहे मिट जाये वजूद कोख में 
चाहे   लायी जाओ तुम हवस के शौक में ..
लेकिन तुम फिर आना ..
चाहे फेकी जाओ कचरे के ढेर में
या पायी जाओ किसी शहर में..
लेकिन तुम फिर आना ..
कभी किस्मत बन कर प्रकट होना,
कभी नियति सी तुम आना
कभी किसी नेक इंसान को कचरे में मिलना या
किसी जरुरत मंद का सहारा तुम बनना ..
सुनो पर तुम जरुर आना ..
चाहे छली जाओ ,
चाहे गम की कढ़ाई में तली जाओ ,
चाहे किसी के बहकावे में आओ ,
चाहे किसी के जुल्म सितम सहने आओ ..
पर तुम जरूर आना ..
सुनो ज्वालामुखी को अपने अंदर बढकाना ..
उसकी लपटो से फिर तुम उनको जलाना ..
जिनसे तुमने दर्द पाया है ..
उनको सबक सिखाने तुम चली आना ...
सुनो ना तुम्हें मिलेंगे वो
सादगी कमाल की लिये .
जो झूठ का नक़ाब रखेंगे ..
लेकिन टूटना नहीं उनसे कभी
वो हज़ारो तरीके से तोड़ेंगे...
तुम बहुत बार रो गी , उदास होगी ,
अरमान तुम्हारे तोड़े जायेंगे ..
लेकिन मत घबराना ..
ओ स्त्री तुम फिर आना ...
तुम फिर से खड़ी होना नये धोके के लिये ...
फिर सहना , पर सुनो किसी से नहीं कहना ..
चुप है तुम्हें रहना ये सब बात तुम्हें सिखाई जाएगी ..
लेकिन तुम कह देना,,लिख लेना दर्द तुम्हारा
जब भी दिल से बिखरो, सिमट जाना ..
सुनो लेकिन तुम फिर आना ..

अस्मिता सिंह..

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