जाने क्यूँ
क्या सोच के मन घबराता है न जाने ये क्या चाहता है हम एक ही नाव (जिंदगी) में बैठे हैं फिर किस पार हम जाना चाहते हैं सृष्टि भी सारी एक सी हैं इंसान भी एक ही जैसा हैं मन से प्राणी विचलित हैं सूरत भी मिलती जुलती है सीरत है सबकी अलग अलग रास्ते भी है जुदा जुदा सबको अपने पथ पर चलना है खुद का ही साथी बनना है सब खाली हाथ ही आएं है सब खाली हाथ ही जायेंगे फिर क्या ये इंसा चाहता है मन में कोहराम है मचा हुआ न जाने किस होड़ में सबको जीना है